पश्चिम उत्तर प्रदेश का विश्वविख्यात मां शाकुम्भरी देवी सिद्धपीठ…..

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पश्चिम उत्तर प्रदेश का विश्वविख्यात मां शाकुम्भरी देवी सिद्धपीठ

जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित पश्चिम यूपी के विख्यात सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मान्यता यह है कि इस स्थान पर मां दुर्गा देवी अकाल पड़ने पर देवताओं द्वारा की गई तपस्या के बाद मां शाकंभरी देवी के रूप में प्रकट हुई थी। सिद्ध पीठ श्री शाकंभरी देवी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तसती, पदम पुराण, कणकधारा, स्रोत आदि में मिलता है मां भगवती का नाम शाकंभरी देवी होने के बारे में मान्यता है। कि प्राचीन काल में दुर्ग नामक दैत्य ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या कर वरदान में चारों वेद मांग लिए थे दैत्यों के हाथ चारों वेद लगने से सभी वैदिक क्रियाएं लुप्त हो गई थी। परिणाम स्वरूप 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई जिस कारण तीनों लोकों में अकाल पड़ गया त्राहि-त्राहि मचने पर देवताओं ने शिवालिक पर्वत की प्रथम शिखर पर मां जगदंबा की घोर तपस्या की देवताओं की करुण पुकार सुनकर करुणामई मां भगवती देवताओं के समक्ष प्रकट हो गई देवताओं ने उनसे तीनों लोगों का अकाल मिटाने की प्रार्थना की इस पर मां जगदंबा ने अपने शत नेत्रों से 9 दिन एवं 9 रात तक अश्रु वृष्टि की इससे सूखी धरा तृप्त हो गई। सभी सागर एवं नदियां जल से भर गई मां भगवती ने देवताओं की भूख मिटाने के लिए अपनी शक्ति से पहाड़ियों पर शाक व फल उत्पन्न किए जिसके बाद माता शाकंभरी कहलाई। श्री दुर्गा सप्तसती के 11वे अध्याय में मां शाकंभरी देवी का वर्णन मिलता है इस अध्याय में कहा गया है कि मां दुर्गा ने देवताओं से कहा कि मैं अपने शरीर से उत्पन्न हुए प्राणों की रक्षा करने वाले शाक (शाक-भाजी) द्वारा सभी प्राणियों का पालन करूंगी तब इस पृथ्वी पर शाकंभरी के नाम से प्रख्यात होऊंगी और इस अवतार में में दुर्ग नामक महाअसुर का वध करूंगी! और मैं दुर्गा देवी के नाम से प्रसिद्ध होंउगी शाकंभरी देवी मंदिर के नजदीक वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध एक मैदान है इसके बारे में मान्यता है कि यहां मां भगवती एवं दैत्यों के बीच घोर युद्ध हुआ था। बताया जाता है कि इसी मैदान पर माता ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था सिद्ध पीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर पर हलवा, पूरी,इलायची दाना, नारियल, चुनरी, मेवे और मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाया जाता है लेकिन पैराणिक कथाओं में सिद्ध पीठ श्री शाकंभरी देवी का प्रमुख प्रसाद सराल बताया गया है। सराल एक विशेष प्रकार का फल है जो मुख्यतः शिवालिक पहाड़ियों पर ही पाया जाता है देखने ने यह शकरकंद की भांति होता है। देवताओं की भूख मिटाने के लिए मां शाकंभरी देवी ने शाक सराल आदि फल उत्पन्न किए थे। जिस कारण सराल का प्रसाद प्रमुख माना जाता है।
मान्यता है कि मां शाकंभरी देवी के दर्शन करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। नवरात्र सहित अन्य दिनों में रोजाना लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन करने पहुंचते हैं। इन दिनों मां शाकंभरी के दरबार में श्रद्धालुओं का तांता लगा है। कहा जाता है कि जो भक्त मां शाकंभरी देवी के दर्शन कर लेते हैं उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। यहां दूर-दूर से लोग मां शाकंभरी देवी के दर्शन करने आते हैं।
शिवालिक पर्वत श्रृंखला में स्थित सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर की गिनती देश के 51 पवित्र शक्तिपीठों में की जाती है। इस सिद्धपीठ में मत्था टेकने से प्राणी सर्व सुख संपन्न हो जाता है। तीर्थ के निकट क्षेत्र में बाबा भूरादेव, छिन्मस्तिका मंदिर, रक्तदंतिका मंदिर आदि है। मां शाकंभरी देवी आदिशक्ति का ही स्वरूप है। सिद्धपीठ में बने माता के पावन भवन में माता शाकंभरी देवी, भीमा, भ्रामरी, शताक्षी देवी की भव्य एवं प्राचीन मूर्ति स्थापित है।

इसलिए होती है प्रथम पूजा बाबा भूरा देव की

बाबा भुरा देव के लिए माता शाकंभरी देवी ने प्रथम पूजा का दिया वरदान….

देवताओं एवं दैत्यों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान धर्म की रक्षा के लिए मां भगवती का परम भक्त भूरा देव अपने साथियों के साथ युद्ध में उतरा था युद्ध के दौरान अपने भक्त भुरा देव को घायल देखकर मां भगवती ने भुरा देव को वचन दिया था कि जो भक्त मेरे दर्शन से पूर्व भुरादेव के दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूर्ण नहीं होगी यही कारण है कि आज भी बड़ी संख्या में पहले श्रद्धालु भुरा देव मंदिर पर प्रसाद चढ़ाने के बाद ही मां शाकंभरी देवी के दर्शन करते हैं।

नवरात्रों के अवसर पर एवं वर्ष में लगातार मां शाकंभरी सिद्ध पीठ क्षेत्र में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें दूरदराज से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं जो अपनी मन्नत पूरी होने के उपरांत सिद्ध पीठ माता शाकंभरी देवी के दरबार में प्रसाद चुनरी नारियल चढ़ाते हैं।

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Author: News 30 Express

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